Google Search

h

Search

Already a Member ?

Blog

सरकार की मदद से शुरू करें अपना बिज़नेस. लघु उद्योगों को भारत सरकर की मदद

Thursday, September 28, 2017

facebook twitter Bookmark and Share

 

 

 

लघु उद्योगों की सहायता और विकास के लिए सरकार की सहायक संस्थाएँ

सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई)क्षेत्र पिछले पांच दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के एक बेहद जीवंत और गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है। एमएसएमई न केवल बड़े उद्योगों की तुलना में अपेक्षाकृत कम पूंजी लागत पर बड़े रोजगार के अवसर प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंए बल्कि यह ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में मदद भी करते हैं जिससे क्षेत्रीय असंन्तुलन काम होता है और राष्ट्रीय आय और धन का अधिक समान वितरण आश्वस्त होता है। एमएसएमई सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक हैं और यह क्षेत्र के देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काफी योगदान देता है।

सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (एम/ओ एमएसएमई)की कल्पना एक जीवंत एमएसएमई क्षेत्र है जहाँ संबंधित मंत्रालयों/विभागों,राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के सहयोग से एमएसएमई सेक्टर के मौजूदा उद्यमों जैसे खादी,ग्रामीण और कॉयर उद्योग को समर्थन,और नए उद्यमों के सृजन को प्रोत्साहन मिले।

लघु उद्योग स्थापनार्थ सहायक संस्थायें

भारत में लघु उद्योगों के विकास तथा इन्हें हरसंभव सहायता उपलब्ध कराने के लिए अनेक संगठन स्थापित किए गए हैं। इनमें से प्रमुख संगठन इस प्रकार हैं:

·       राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड

राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड 1955 में भारत सरकार द्वारा स्थापित एक सार्वजनिक उपक्रम है। यह भारत के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत आता है। यह देश में सूक्षम और स्मॉल्स स्तर के उद्योगों और उद्यमों को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए स्थापित किया गया था। यह मूल रूप से एक भारतीय सरकारी एजेंसी के रूप में स्थापित किया गया था। जो बाद में पूर्ण स्वामित्व वाली सरकार निगम में परिवर्तित हो गया। भारत के छोटे और उभरते उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने सरकारी एजेंसी की स्थापना करने का निर्णय लिया जो लघु उद्योगों को सहायता प्रदान कर सकते हैं।

उद्देश्य

राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम किराया खरीद आधार पर मशीनरी उपलब्ध कराने और निर्यात में विपणन और सहायता के उद्देश्य से स्थापित किया गया। एनएसीआईसी कच्चे माल जैसे कोयले, लोहा, स्टील और अन्य सामग्री की आपूर्ति के आयोजन में मदद करता है। और जो इस सामग्री का उत्पादन करते हैं लघु उद्योगों को रियायती दरों पर ही उपलब्ध कराते हैं।

भारत सरकार के नियमों के अनुसार सरकारी खरीद में प्राथमिकता हासिल करने के लिए किसी भी निगम का स्टोर खरीदारी में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। लघु उद्योग इकाइयां इस पंजीकरण के माध्यम से जिन लाभों के लिए अधिकृत हो जाती हैं, वे निम्नलिखित है:

          1.       इकाइयों को सुरक्षा धन देने से छुटकारा मिल जाता है।

          2.       इन उद्योगों को बड़े उद्योगों की तुलना में 15 प्रतिशत मूल्य प्रमुखता मिल जाती है। इसके कारण सरकारी खरीद में लघु उद्योगों से माल खरीदने को प्रमुखता मिलती है।

          3.       राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लघु इकाइयों को निःशुल्क टेंडर नोटिस भेज सकता है।

          4.       निगम की सिपफारिश पर कोई भी बैंक आसानी से ऋण स्वीकृत कर लेता है।

          5.       लघु उद्योगपतियों को निगम मशीनों की किराया प्रतिखरीद में विशेष तौर पर सहायता देने के लिए प्रयास करता है। मशीन की कीमत और ब्याज की पूरी रकम को सात वर्षों में वापस लौटाना होता है। इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए उद्यमियों को जमानत देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके साथ-साथ निगम ने लघु उद्यमियों को उत्पादन एवं प्रशिक्षण देने के लिए भी केंद्रों की स्थापना की है। यह केंद्र नई दिल्ली, हावड़ा तथा राजकोट में स्थापित हैं। यह केंद्र मशीनों का उत्पादन करने के साथ-साथ उद्यमियों को प्रशिक्षण भी देते हैं।

·       लघु उद्योग विकास संगठन

इस संगठन को लघु उद्योगों के विकास के लिए सन् 1954 में स्थापित किया गया था। विकास संगठन का प्रमुख विकास आयुक्त होता है। लघु उद्योग की विकास संबंधी नीतियां तैयार करने में यह संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा संगठन विभिन्न प्रदेशों के औद्योगिक विकास एवं उनसे संबंधित संस्थाओं के बीच तालमेल बैठाने का काम करता है। इस संगठन के अंतर्गत 60 से अधिक कार्यालय तथा 21 स्वायत्त निकाय सम्मिलित है। इस स्वायत्त निकाय में प्रशिक्षण संस्थान और परियोजना एवं प्रक्रिया विकास केन्द्र शामिल हैं।

लघु उद्योग विकास संगठन द्वारा लघु उद्योगों को प्रदान की गई विभिन्न सेवाएं:

            1.         परियोजना और उत्पाद प्रोपफाइल तैयार करना

            2.         निर्यात के लिए सहायता प्रदान करना

            3.         तकनीकी और प्रबंधकीय परामर्श प्रदान करना

            4.         क्षेत्रीय कार्यालय केंद्र और राज्य सरकारों के बीच प्रभावी लिंक के रूप में भी कार्य करते हैं।

            5.         लघु उद्योगों के रूप में लगाए जा सकने योग्य उद्योगों के संबंध में जानकारी प्रदान करना

            6.         औद्योगिक विकास तथा आधुनिकीकरण की सहायता देना

            7.         तकनीकी जानकारी देने के साथ-साथ आर्थिक सुविधाएं जुटाना

            8.         प्रबंधन एवं तकनीकी संबंधी प्रशिक्षण उपलब्ध कराना

            9.         लघु उद्योगों में निर्मित होने वाले उत्पादों की निर्माण प्रक्रिया, परामर्श एवं रिपोर्ट तैयार करने के संबंध में जानकारी उपलब्ध करवाना

            10.       कारखाना स्थापित करने हेतु भूमि एवं भवन के लिए सहयोग करना

            11.       सरकारी विपणन में लघु उद्योगों द्वारा भाग लेने के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना

            12.       उद्योग से संबंधित मशीनों की खरीददारी तथा अन्य सुविधाएं प्राप्त करने के लिए सलाह देना।

·       क्षेत्रीय राज्य लघु उद्योग निगम

देश के विभिन्न राज्यों की सरकारों द्वारा विभिन्न विशेष कार्यों की पूर्ति के लिए राज्यों में लघु उद्योग निगमों को स्थापित किया गया है। राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इन निगमों द्वारा किए जाने वाले प्रमुख कार्य हैं:

1.         औद्योगिक संस्थान के प्रबंधन एवं विकास में सहायता

    2.     हायर परचेज़ प्रणाली के अनुसार लघु उद्योगों को मशीनें दिलाना

            3.         आरक्षित वस्तुओं की क्रिकी में मदद

            4.         कच्चे माल का वितरण

            5.         लघु उद्योगों को प्रबंधकीय तकनीकी तथा वित्तीय जानकारी देने के साथ-साथ तत्संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराना

            6.         आयात-निर्यात में सहायता

            7.         औद्योगिक इकाई का विकास।

 

·       भारतीय मानक ब्यूरो

इसकी स्थापना भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 1986 के तहत की गई। एक निगमित निकाय के रूप में इसमें 25 सदस्य केन्द्रीय या राज्य सरकारों, उद्योग, वैज्ञानिक और अनुसंधान संस्थानों और उपभोक्ता संगठन से है। भारत सरकार ने विभिन्न उद्योगों में बनने वाले कच्चे और पक्के माल की गुणवत्ता का स्तर बनाए रखने के लिए भारतीय मानक संस्थान की स्थापना की।

ब्यूरो के प्रमुख कार्यों में से एक भारतीय मानक तैयार करने, मान्यता और बढ़ावा देना है। भारतीय मानक ब्यूरो ने 14 क्षेत्रों की पहचान की, जो भारतीय उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। लघु उद्योग के उत्पादों के संबंध में लगभग सभी मामलों पर यह संस्थान जानकारी उपलब्ध कराने में प्रमुख भूमिका निभाता है।

उपभोक्ताओं के साथ ही उद्योग के हित को ध्यान में रखते हुए, भारतीय मानक ब्यूरो में विभिन्न गतिविधियाँ शामिल हैं:

            1.         मानक निरूपण

            2.         उत्पाद और हॉलमार्किंग  को प्रमाणित करना

            3.         प्रयोगशाला सेवाएं प्रदान करना

            4.         भारतीय मानक और अन्य प्रकाशनों की बिक्री करना

            5.         उपभोक्ता सम्बंधित गतिविधियों का संचालन करना

            6.         प्रचार गतिविधियों का संचालन करना

            7.         प्रशिक्षण सेवाएं प्रदान करना

            8.         सूचना सेवाएं प्रदान करना।

संस्थान की प्रमाणीकरण मानक योजना लघु उद्यमियों के खरीददार को यह विश्वास दिलाती है कि इन उद्यमों में उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता की परीक्षा कर ली गई है और एक सक्षम संस्थान द्वारा उसे प्रमाणीकृत किया जा सकता है, जिसके कारण प्रमाणीकृत वस्तु को विश्वास के साथ खरीदा जा सकता है। संस्थान का चिन्ह हासिल करने के लिए लघु उद्यमी को निम्न प्रक्रिया का पालन करना पड़ता हैः

            1.         भारतीय मानक संस्थान के डायरेक्टर को निर्धारित पफार्म के तहत दो प्रतियों में आवेदन करता पड़ता है। प्रारंभिक जांच शुल्क के तौर पर आवेदन के साथ निर्धारित शुल्क जमा कराया जाता है।

            2.         एक मानक के तहत आने वाली मद हेतु भिन्न-भिन्न आवेदन करना पड़ता है।

            3.         संस्थान पफर्म का निरीक्षण इस बात के लिए करता है कि पफर्म में विशिष्ट मानक में गुणवत्ता बनाए रखने के लिए परीक्षण की सुविधाएं मौजूद हैं या नहीं। संस्थान द्वारा तयशुदा अधिकारी निरीक्षण के समय पफर्म में तैयार हो रही वस्तुओं के नमूने लेकर किसी मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में भेज देता है। इस प्रयोगशाला में होने वाले परीक्षाण के शुल्क का वह आवेदक करता है।

            4.         निरीक्षण तथा परीक्षण के परिणाम पफर्म के पक्ष में होने की स्थिति में संस्थान योजना का मसौदा तैयार करने के बाद आवेदक के पास स्वीकृति के लिए भेज देता है। इस योजना के उत्पाद की निर्माण प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का संशोधन अथवा परिवर्तन करने का सुझाव नहीं दिया जाता।

5.         आवेदक द्वारा योजना स्वीकृत करने और चिर् लगाने के शुल्क पर करार हो जाने और लाइसेंस मिलने के बाद आवेदक अपने उत्पदों परप आईएसआई चिर् लगाने के लिए अधिकृत हो जाता है। हालांकि आवेदक अथवा निर्माता बाद में स्वयं अपने उत्पाद पर आईएसआइ का चिन्ह लगा सकता है, लेकिन संस्थान समय-समय पर  (तीन महीने में एक बार)इस बात का निरीक्षण करता है कि उत्पादों की गुणवत्ता में किसी भी प्रकार का समझौता तो नहीं किया जा रहा। यदि उत्पादन के संबंध में कमी पाई जाती है तो आवेदक को इस संबंध में चेतावनी भी दी जाती है।

            6.         अब निर्माता को लाइसेंसधारी कहा जाता है और उसे सालाना लाइसेंस शुल्क देना पड़ाता है। लाइसेंस के नवीकरण के लिए रुपए अदा करने होंगे। इसके साथ-साथ लाइसेंसधारी निर्माता का अपने उत्पाद के वार्षिक उत्पादन के अनुसार चिन्ह लगाने का शुल्क अदा करना पड़ता है।

·       सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय भारत सरकार की एक शाखा है जो भारत में नियमों, विनियमों और सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यमों से संबंधित कानूनों के निर्माण और प्रशासन के लिए शीर्ष निकाय है। यह भारत में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की नीति बनाने संवर्धन, विकास तथा संरक्षण के लिये एक नोडल मंत्रालय है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई)देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8 प्रतिशत, विनिर्माण उत्पादन में 45 प्रतिशत और निर्यात में 40 प्रतिशत योगदान करते हैं। ये कृषि के बाद रोजगार का सबसे बड़ा हिस्सा प्रदान करते हैं।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों केक संवर्धन तथा विकासार्थ अपने फील्ड संगठनों के माध्यम से डिजाइन तथा नीतियों का कार्यान्वयन करता है। मंत्रालय अन्य मंत्रालयों विभागों के साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्रा की ओर से नीति समर्थन के कार्यों का निष्पदन भी करता है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय नवीनीकरण और उद्यम को प्रोत्साहित और सम्मानित करता है। देश के विकास में सहायता करने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय कई क्षेत्रीय कार्यालयों और तकनीकी संस्थानों के माध्यम से राज्य सरकारों, उद्योग संघों, बैंकों और अन्य हितधारकों के साथ घनिष्ठ समन्वय में काम करते हैं।

इन संस्थानों के प्रमुख कार्य निम्न हैं:

            1.         आदर्श योजना, डिजाइन, तकनीकी पुस्तकें, नक्शे आदि की तैयारी

            2.         प्रबंधन तथा तकनीकी सलाह तथा संबंधित उद्योग की उन्नति तकनीकों का प्रदर्शन

            3.         प्रबंधन तथा उत्पादन में सुधार लाने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं

·      राज्य वित्तीय निगम

केंद्रीय औद्योगिक वित्त निगम की स्थापना, औद्योगिक वित्त निगम अधिनियम 1948 के तहत औद्योगिक उपक्रमों को जो वाणिज्यिक बैंकों की सामान्य गतिविधियों के बाहर आते हैं, मध्यम और लंबी अवधि के ऋण उपलब्ध कराने के लिए की गई थी।

देश के लगभग सभी प्रदेशों में फाइनेंशियल कारपोरेशन यानी वित्तीय निगमों को स्थापित किया गया है, जिनका प्रमुख कार्य लघु एवं बड़े उद्योगों को उचित ब्याज पर ऋण की सुविधा देना है। इकाई उद्योग निदेशालय में रजिस्टर्ड संस्थाओं के आवेदन-पत्रों पर ही यह वित्तीय निगम विचार करते हैं। ऋण लेने के लिए निगम के निर्धारित प्रपत्रा को जमा किया जाता है। इस प्रपत्रा का अध्ययन करने के बाद ऋण मंजूर हो जाता है। ऋण उपलब्ध कराने के अलावा वित्तीय निगम कुछ दूसरे कार्यों के लिए भी सहायक होते हैं, जिनमें से प्रमुख है:

          1.       कुछ विशिष्ट क्षेत्रों को प्रबंधन तकनीकी एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना।

          2.       निर्यात व्यापार में सहायता देना।

          3.       औद्योगिक प्रतिष्ठानों को ऋण देने के अलावा ऋण पत्र की खरीद।

          4.       इन प्रतिष्ठानों द्वारा जारी शेयरों, स्टाक, ऋण पत्र आदि की जिम्मेदारी लेना।

          5.       निर्यात व्यापार में सहायता।

          6.       साख समूहन, कानूनी दस्तावेज आदि में सहायता करते हैं।

          7.       विभिन्न परियोजना दस्तावेजों के प्रलेखन।

          8.       ऋण की नियुक्ति के अंतर्गत यंत्र की संरचना के डिजाइन, उपकरणों की नियुक्ति के साथ वित्तीय संस्थान, बैंक आदि आते हैं।

          9.       संगठनात्मक संरचनात्मक परिवर्तन में सहायता जैसेः

·             परिचालन प्रदर्शन का विश्लेषण

·             मौजूदा संगठनात्मक संरचना का अध्ययन

·             उत्पादों के संबंध में बाजार विश्लेषण

·             घरेलू और अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य की समीक्षा

·             अचल संपत्ति और वस्तुसूची का मूल्यांकन

·             नई इकाई के गठन पर सलाह

भारतीय राज्य व्यापार निगम लिमिटेड

पूर्व में उद्योगों को लंबे समय तक उचित दरों पर कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो पाता था। इसके अलावा यदि इन्हें कच्चा माल मिल भी जाता तो उसकी दर इतनी अधिक होती थी कि वे इसे खरीद पाने में अपने आपको असमर्थ पाते थे। इसका लाभ बड़े उद्योग ले जाते थे। इसलिए आयातित कच्चे माल को उचित दर पर लघु उद्योगों को उपलब्ध कराने के लिए भारतीय राजय व्यापार निगम लिमिटेड की 1956 में स्थापना की गई। यह निगम पूर्णतः सरकारी है क्योंकि इसकी स्थापना के लिए संपूर्ण धनराशि भारत सरकार ने उपलब्ध कराई है।

राज्य व्यापार निगम लघु उद्योगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली उन वस्तुओं की पहचान करता है जो विदेशों में उपलब्ध हैं। इसके बाद वह किसी विदेशी पफर्म को थोक में आर्डर देकर इन वस्तुओं को सस्ती दरों पर खरीद लेता है। इस कच्चे माल की खरीद के अलावा यह निगम देश में बनी वस्तुओं के निर्यात में भी यथासंभव मदद देता है। यदि सभी रजिस्टर्ड उद्योग अपने उत्पाद को निगम में पंजीकृत करा लें तो निगम विदेशी मांग की पूर्ति के लिए इन उद्योगों से विदेशी सामानों की खरीद के अलावा उकी बिक्री को विदेशी बाजार में सुनिश्चित करने में मदद देता है। इतना सब कुछ करने के बावजूद निगम लघु उद्योगों से नाममात्रा का कमीशन लेता है। यहां यह जानकारी देना आवश्यक है कि लघु उद्योग निर्यात सहायता योजना के तहत केवल कुछेक वस्तुओं को शामिल किया गया है। इसलिए यही उत्पाद इस योजना का लाभ ले पाते हैं।

लघु उद्योग के लिए निर्यात सहायता योजना के तहत कृषि संबंधी उपकरण और औजार, कटलरी, बाथ पाइप पिफटिंग, कृत्रिम आभूषण, रेजर ब्लेड, वाहनों के कलपुर्जे, साइकिलों के कलपुर्जे, सिलाई मशीन, डीजल इंजन और उनके हिस्से, बिजली का घरेलू सामान, डुप्लीकेटर, हाथ से नंबर डालने की मशीनें, टाइपराइटर, इमारतों के काम आने वाला लोहे आदि का सामान, चश्मों के प्रेफम, पेंट ब्रश, चिटखनी, प्रेशर स्टोव, छिड़काव करने के यंत्रा, डस्टर, नेकलेस, कंघी, प्लास्टिक चूड़ियां, घरेलू तथा कार्यालय का स्टील पफर्नीचर, स्टोरेज बैटरियां, टेलकम पाउडर, नेफ्रथलीन की गोलियां, ऊन के स्वेटर, स्टेनलेस स्टील से बने सर्जरी में काम आने वाले उपकरण, वायुशोधक आदि शामिल हैं।

·       निर्यात प्रोत्साहन परिषद

निर्यात प्रोत्साहन परिषद की मुख्य भूमिका उच्च गुणवत्ता वाले सामान और सेवाओं की एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में विदेशों में भारत की छवि बनाना है। निर्यात प्रोत्साहन परिषदों का मूल उद्देश्य देश के निर्यात को बढ़ावा देना और विकसित करना है। प्रत्येक परिषद एक विशेष समूह के उत्पादों, परियोजनाओं और सेवाओं के संबर्धन के लिए जिम्मेदार है।

कच्चे-पक्के माल के विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन तथा लघु उद्यमियों को सहायता देने के लिए अनेक निर्यात प्रोत्साहन आयोगों की स्थापना की गई है। इन आयोगों के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:

   1.         अपने सदस्यों को निर्यात नीति में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों की जानकारी उपलब्ध कराना।

   2.         विदेशी बाजार से संबंधित अधिकांश जानकारी को लघु उद्यमियों तक पहुंचाना।

   3.         संबंधित उत्पाद के बारे में पिछले वर्षों के आंकड़े तथा विदेशी बाजार के अनुमानित भाव जैसे तकनीकी पहलुओं की जानकारी लघु उद्यमियों तक पहुंचाना।

   4.         विदेशी खरीददार तथा उनकी भारतीय उद्यमियों से उत्पाद संबंधी अपेक्षाएं एवं मात्रा आदि की जानकारी अपने पंजीकृत आपूर्तिकर्ताओं को देना।

   5.         अपने सदस्यों के विकास और निर्यात बढ़ाने के लिए व्यावसायिक रूप से उपयोगी जानकारी और सहायता प्रदान करना।

   6.         विदेशी बाजार के अवसरों का पता लगाने के लिए विदेश में अपने सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल के दौरे का आयोजन करना।

   7.         भारत और विदेशों में व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों में भागीदारी का आयोजन करना।

   8.         केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर निर्यात समुदाय और सरकार के बीच बातचीत को बढ़ावा देना।

   9.         एक सांख्यिकीय आधार का निर्माण करना और देश के निर्यात और आयात के आंकड़ें प्रदान करना और अपने सदस्यों के निर्यात और आयात, साथ ही अन्य प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार के आंकड़े प्रदान करना।

 

See more

http://goo.gl/2KrF8G

http://goo.gl/3857gN

http://goo.gl/gUfXbM      

http://goo.gl/Jf0264  

  

Contact us:

Niir Project Consultancy Services

An ISO 9001:2015 Company

106-E, Kamla Nagar, Near Spark Mall,

New Delhi-110007, India.

Email: [email protected], [email protected]

Website :

http://www.niir.org

http://www.entrepreneurindia.co

 

Tags

कैसे लगाएं लघु उद्योग, कैसे लगाएं छोटे-छोटे उद्योग, लघु एवं गृह उद्योग, स्वरोजगार बेहतर भविष्य का नया विकल्प, अमीर बनने के तरीके, अवसर को तलाशें, आखिर गृह और कुटीर उद्योग कैसे विकसित हो, क्या आप अपना कोई नया व्यवसाय, व्यापारकारोबार, कम पैसों में खड़ा करें बड़ा बिजनेस, कम लागत में बेहतर मुनाफा, कुटीर उद्योग के नाम, नगरीय कुटीर उद्योग, कुटीर उद्योग लिस्ट, ग्रामीण कुटीर उद्योग, लघुउद्योग, लघु उद्योगों के उद्देश्य, भारतीय लघु उद्योग, लघु उद्योग शुरू करने सम्बन्धी मार्गदर्शन, कम निवेश मे करे बिजनेस खुद का मालिक बने, लघु उद्योग, कम लागत के उद्योग, कम लागत, कम मेहनत और मुनाफा कई गुना, कम लागत में शुरू होने वाला उद्योग, अपना उद्योग, ऐसे कीजिए कम लागत में लाभकारी व्यवसाय, कम लागत मुनाफा कई गुना,Top Best Small Business Ideas in India, Business Ideas With Low Investment, How to Get Rich?, Low Cost Business Ideas, Simple Low Cost Business Ideas, Top Small Business Ideas Low Invest Big Profit in India Smart Business Ideas, Very Low Budget Best Business Ideas, उद्योग जो कम निवेश में लाखों की कमाई दे सकता है, 2017 में शुरू करें कम लागत में ज्यादा मुनाफे वाला बिज़नेस, भारत के लघु उद्योग, लघु उद्योग की जानकारी, लघु व कुटीर उद्योग, लघु उद्योग जो कम निवेश में लाखों की कमाई दे, महिलाओं के लिए लगाएंगे लघु उद्योग, कारोबार योजना चुनें, किस वस्तु का व्यापार करें किससे होगा लाभ, कुटीर उद्योग, कुटीर और लघु उद्यमों योजनाएं, कैसे उदयोग लगाये जाये, कौन सा व्यापार करे, कौन सा व्यापार रहेगा आपके लिए फायदेमंद, नौकरी या बेरोजगारी से हैं परेशान, Top Easy Small Business Ideas in India, Small Investment Big Returns, कुटीर उद्योग का महत्व, कुटीर उद्योग की सूची, कुटीर उद्योग के नाम, कुटीर उद्योग के प्रकार, स्वरोजगार के कुछ सरल उपाय, स्वरोजगार हेतु रियायती ऋण, स्वरोजगार योजनाओं, स्वरोजगार के लिए कौशल विकास, कम लागत में अधिक फायदेवाला बिजनेस, Small Business But Big Profit in India, Best Low Cost Business Ideas, Small Business Ideas that are Easy to Start,  How to Start Business in India, Top Small Business Ideas in India for Starting Your Own Business, आधुनिक कुटीर एवं गृह उद्योग, आप नया करोबार आरंभ करने पर विचार कर रहे हैं, उद्योग से सम्बंधित जरुरी जानकारी, औद्योगिक नीति, कम पूंजी के व्यापार, कम पैसे के शुरू करें नए जमाने के ये हिट कारोबार, कम लागत के उद्योग, कम लागत वाले व्यवसाय, कम लागत वाले व्यवसाय व्यापार, कारोबार बढाने के उपाय,छोटे एवं लघु उद्योग, नया व्यवसाय शुरू करें और रोजगार पायें लघु उद्योग,लघु उद्योग खोलने के फायदे, स्वरोजगार, लघु, कुटीर उद्योग


blog comments powered by Disqus



About NIIR

Hide ^

NIIR PROJECT CONSULTANCY SERVICES (NPCS) is a reliable name in the industrial world for offering integrated technical consultancy services. NPCS is manned by engineers, planners, specialists, financial experts, economic analysts and design specialists with extensive experience in the related industries.

Our various services are: Detailed Project Report, Business Plan for Manufacturing Plant, Start-up Ideas, Business Ideas for Entrepreneurs, Start up Business Opportunities, entrepreneurship projects, Successful Business Plan, Industry Trends, Market Research, Manufacturing Process, Machinery, Raw Materials, project report, Cost and Revenue, Pre-feasibility study for Profitable Manufacturing Business, Project Identification, Project Feasibility and Market Study, Identification of Profitable Industrial Project Opportunities, Business Opportunities, Investment Opportunities for Most Profitable Business in India, Manufacturing Business Ideas, Preparation of Project Profile, Pre-Investment and Pre-Feasibility Study, Market Research Study, Preparation of Techno-Economic Feasibility Report, Identification and Selection of Plant, Process, Equipment, General Guidance, Startup Help, Technical and Commercial Counseling for setting up new industrial project and Most Profitable Small Scale Business.

NPCS also publishes varies process technology, technical, reference, self employment and startup books, directory, business and industry database, bankable detailed project report, market research report on various industries, small scale industry and profit making business. Besides being used by manufacturers, industrialists and entrepreneurs, our publications are also used by professionals including project engineers, information services bureau, consultants and project consultancy firms as one of the input in their research.

^ Top